Friday, 2 February 2024

नाभिखिसकना या धरण जाना घरेलू उपाय:


प्रायः आप सभी इस समस्या से जाने अनजाने पीड़ित जरूर हुए होंगे आज हम आपको इस समस्या का समाधान विस्तृत रूप में बताएंगे।

नाभि खिसकना या धरण जाना आयुर्वेद और प्राकृतिक उपचार पद्धति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नाभि को मानव शरीर का केंद्र माना जाता है। नाभि स्थान से शरीर की बहत्तर हजार नाड़ियों जुड़ी होती है । यदि नाभि अपने स्थान से खिसक जाती है तो शरीर में कई प्रकार की समस्या पैदा हो सकती है। ये समस्या किसी भी प्रकार दवा लेने से ठीक नहीं होती। इसका इलाज नाभि को पुनः अपने स्थान पर लाने से ही होता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसे नहीं माना जाता है। परंतु आज भी इस पद्धति से हजारों लोग ठीक होकर लाभ प्राप्त कर रहे है। नाभि का अपने स्थान से खिसक जाने को नाभि हटना, धरण जाना, गोला खिसकना, पिचोटी खिसकना, नाभि पलटना या नाभि चढ़ना आदि नामों से भी जाना जाता है। नाभि खिसकने के कारण पेट दर्द, कब्ज, दस्त, अपच आदि होने लगते है। यदि नाभि का उपचार ना किया जाये तो शरीर में कई प्रकार की अन्य परेशानियाँ पैदा हो सकती है। जैसे दाँत, बाल, आँखें प्रभावित हो सकते है, मानसिक समस्या पैदा हो सकती है। डिप्रेशन हो सकता है। अतः नाभि का पुनः अपने स्थान पर आना आवश्यक होता है। आधुनिक जीवन में खानपान आहार विहार, भागम-भाग की टेंसन भरी जिंदगी ऐसे में हाथ-पांव में किसी प्रकार झटका लग जाए या फिर चढ़ते-उतरते चलते समय ढीला पाँव पड़ने से नाभि में स्थित समान वायु चक्र अपने स्थान से दायें-बाएं या उपर-नीचे सरक जाता है तो इसे नाभि का टलना (Navel sidestep) कहा जाता है। आजकल आधुनिक जीवन-शैली इस प्रकार की है कि भाग-दौड़ के साथ तनाव - दबाव भरे प्रतिस्पर्धापूर्ण वातावरण में काम करते रहने से व्यक्ति का नाभि-चक्र निरंतर क्षुब्ध बना रहता है इससे नाभि अव्यवस्थित हो जाती है और परिणाम ये होता है कि पेट दर्द ,पेचिस-पतले दस्त ,पेट आम जाना पेट फूलना-अरूचि-हरारत आदि होता है और जहाँ तक इसे अपने नियत स्थान पर पुन:स्थापित नही कर दिया जाये रोगी का आराम नहीं होता है और लापरवाही करने पर ये हमेशा के लिए अपनी जगह बना लेता है वैसे नाभि पुरुषो में बायीं तरफ और स्त्रियों में दायी ओर टला करती है। योग में नाड़ियों की संख्या बहत्तर हजार से ज्यादा बताई गई है और इसका मूल उदगम स्त्रोत नाभिस्थान है कई बार नाभि के टल जाने पर भी कब्ज की शिकायत हो जाती है और जब तक नाभि टली है तब तक कब्ज ठीक नहीं हो सकता है अत:इसके लिए हमें सबसे पहले अपनी नाभि की जांच करवा लेनी चाहिए अगर नाभि स्पंदन केंद से खिसक गई है तो उसे नाभि टलना (Navel sidestep) कहते हैं इसके सही जगह में आते ही कब्ज की परेशानी दूर हो जाती है-नाभि में लंबे समय तक अव्यवस्था चलती रहती है तो उदर विकार के अलावा व्यक्ति के दाँतों, नेत्रों व बालों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है और दाँतों की स्वाभाविक चमक कम होने लगती है तथा यदाकदा दाँतों में पीड़ा होने लगती है और नेत्रों की सुंदरता व ज्योति क्षीण होने लगती है-बाल असमय सफेद होने लगते हैं-आलस्य, थकान, चिड़चिड़ाहट, काम में मन न लगना, दुश्चिंता, निराशा, अकारण भय जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों की उपस्थिति नाभि चक्र की अव्यवस्था की उपज होती है। नाभि स्पंदन से रोग की पहचान का उल्लेख हमें हमारे आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धतियों में मिल जाता है परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके है यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है यानि छाती की तरफ तो अग्न्याशाय खराब होने लगता है इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है और मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ होने लगती हैं। नाभि खिसकने का कारण यदि पेट की मांसपेशियां कमजोर होती है तो नाभि खिसकने की समस्या ज्यादा होती है । दैनिक जीवन के कार्य करते समय शरीर का संतुलन सही नहीं रह पाने के कारण नाभि खिसक सकती है। इसके अलावा शरीर की मांस पेशियों पर एक तरफ अधिक भार पड़ने से भी धरण चली जाती है, गोला सरक जाता है । पेट पर बाहरी या अंदरूनी दबाव नाभि टलने का कारण हो सकता है। सामान्य कारण इस प्रकार है : असावधानी से दाएं या बाएं झुकना। संतुलित हुए बिना अचानक एक हाथ से वजन उठाना। चलते हुए अचानक ऊंची नीची जगह पर पैर पड़ना। खेलते समय गलत तरीके से उछलना। तेजी से सीढ़ी चढ़ना या उतरना। ऊंचाई से छलांग लगाना। पेट में अधिक गैस बनना। पेट में किसी प्रकार की चोट लगना। स्कूटर या मोटर साइकिल चलाते समय झटका लगना। गर्भावस्था में पेट पर आतंरिक दबाव तनाव। बचपन से किसी कारण से नाभि खिसकी हुई हो।

नाभि खिसकने की जाँच : नाभि टलने या खिसकने का पता लगाने के बहुत आसान तरीके होते है। इनको जानकर आप भी नाभि खिसकने या धरण जाने का पता कर सकते है। थोड़े से अनुभव के बाद तुरंत पता चल जाता है। अधिकतर पुरुष की नाभि बायीं तरफ तथा स्त्रियों की नाभि दायीं तरफ खिसकती है। 1.👉 नाभी के खिसकने का पता करने की विधि इस प्रकार है : 1. सीधे खड़े हो जाएँ। दोनों पैर पास में सीधे रखें। अपने दोनों हाथ सीधे करें। हथेलियां खुली रखकर इस तरह समानांतर रखें की दोनों छोटी अंगुलीयां (Little Finger) पास में रहें। हथेली की रेखा मिलाते हुए छोटी अंगुली (Little Finger) की लंबाई चेक करें। यदि छोटी अंगुलियां की लंबाई में फर्क नजर आता है यानि कनिष्ठा अंगुलियां छोटी बड़ी नजर आती है तो नाभि खिसकी हुई है। 2. पुरुष की नाभि चेक करने के लिए एक धागे से उसकी नाभि और एक छाती के केन्द्रक के बीच की दूरी नापें। अब नाभि से दूसरी छाती के केन्द्रक की दूरी नापें। यदि नाप अलग अलग आती है तो नाभि खिसकी हुई है। 3. सुबह खाली पेट चटाई पर पीठ के बल लेट जाएँ । हाथ और पैर सीधे रखें। हथेलियाँ जमीन की तरफ रखें। अब अंगूठे से नाभि पर हल्का दबाब डालकर स्पंदन चेक करें। यदि स्पंदन नाभि पर महसूस होता है। तो नाभि सही है। यदि स्पंदन नाभि के स्थान पर ना होकर नाभि से ऊपर, नीचे, दाएं या बाएं महसूस होता है तो नाभि अपने स्थान से खिसकी हुई है। जिस प्रकार कलाई पर अंगूठे के नीचे नाड़ी देखने पर स्पंदन महसूस होता है। इसी प्रकार का स्पंदन नाभि पर महसूस होता है। 4. सीधे पीठ के बल लेट जाएँ। दोनों पैर पास में लाएं यदि पैर के अंगूठे ऊपर नीचे दिखाई दें तो नाभि अपने स्थान से हटी हुई है। नाभि खिसकने से नुकसान : यदि नाभि नीचे की ओर खिसक गई है तो दस्त , अतिसार, पेचिश आदि की समस्या हो जाती है। नाभि के ऊपर की तरफ खिसकने पर कब्ज रहने लगती है। गैस अधिक बनती है। इसके कारण लंबी अवधि में फेफड़ों की समस्या, अस्थमा, डायबिटीज आदि बीमारियां हो सकती है। बाईं और खिसकने पर सर्दी, जुकाम, खाँसी, कफ आदि की समस्या बार बार हो सकती है। दायीं तरफ खिसकने पर लीवर पर असर पड़ सकता है। एसिडिटी हो सकती है, अपच या अफारा हो सकते है। यदि नाभि अधिक गहराई में महसूस हो तो व्यक्ति कितना भी खाये शरीर कृशकाय ही बना रहता है। नाभि को ठीक करने के उपाय : नाभि खिसके या गोला सरके हुए अधिक समय नहीं हुआ हो तो नीचे दिए गए तरीके अपनाने से जल्द वापस अपनी जगह आ जाती है। यदि समय अधिक हो गया हो तो थोड़ा अधिक प्रयास करना पड़ता है। यदि नीचे दिए गए तरीको से लाभ ना हो तो किसी अनुभवी से नाभि सही करवानी चाहिए। कुछ लोग खुद का पेट तेल लगा कर मसल कर नाभि सही करने का प्रयास करते है,जो उचित तरीका नहीं है। पेट को मसलना नहीं चाहिए। यहाँ जो नाभि ठीक करने के तरीका दिए गए है उनमे से अपनी शारीरिक अवस्था के अनुसार नाभि को वापस अपनी जगह ला सकते है। पैर के अंगूठे में काला धागा बांधने से नाभि बार बार नहीं खिसकती है। इस उपाय से आपकी नाभि भविष्य में नही खिसकेगी। जिस हाथ की छोटी अंगुली की लंबाई कम हो उस हाथ सीधा करें। हथेली ऊपर की तरफ हो। अब इस हाथ को दुसरे हाथ से कोहनी के जोड़ के पास से पकड़ें। अब पहले वाले हाथ की मुट्ठी कस कर बंद करें। इस मुट्ठी से झटके से अपने इसी तरफ वाले कंधे पर मारने की कोशिश करें। कोहनी थोड़ी ऊंची रखें। ऐसा दस बार करें। अब अंगुलियों की लंबाई फिर से चेक करें। लंबाई का फर्क मिट गया होगा। यानि नाभि अपने स्थान पर आ गई है। यही ऐसा नहीं हुआ तो एक बार फिर से यही क्रिया दोहराएं। सुबह खाली पेट सीधे पीठ के बल चटाई या योगा मेट पर लेट जाएँ। दोनों पैर पास में हो और सीधे हो। हाथ सीधे हो और कलाई जमीन की तरफ हो। अब धीरे धीरे दोनों पैर एक साथ ऊपर उठायें। इन्हें लगभग 45° तक ऊँचे करें। फिर धीरे धीरे नीचे ले आएं। इस तरह तीन बार करें। नाभि सही स्थान पर आ जाएगी। यह उत्तानपादासन कहलाता है। सुबह खाली पेट योगा मेट पर पीठ के बल सीधे लेट जाएँ। अब एक पैर को मोड़े और दोनों हारथों से पैर को पकड़ लें। दूसरा पैर सीधा ही रखें। जिस प्रकार शिशु अपने पैर को पकड़ कर पैर का अंगूठा मुँह में डाल लेते है उसी प्रकार आप पैर को पकड़ कर अंगूठे को धीरे धीरे अपनी नाक की तरफ बढ़ाते हुए नाक से अड़ाने की कोशिश करें। सर को थोड़ा ऊपर उठा लें। अब धीरे धीरे पैर सीधा कर लें। यह एक योगासन है जिसे पादांगुष्ठनासास्पर्शासन कहते है। इसी प्रकार दुसरे पैर से यही क्रिया करें। इस प्रकार दोनों पैरों से तीन तीन बार करें। फिर एक बार दोनों पैर एक साथ मोड़ कर यह क्रिया करें। नाभि अपनी सही जगह आ जाएगी। यदि आपकी मांस पेशियाँ कमजोर है तो बार बार नाभि खिसक सकती है, गोला खिसक सकता है।

अतः थोड़ा व्यायाम आदि करके उन्हें मजबूत करें। लेटकर नाभि को दबाकर महसूस करें तो छोटी सी गेंद जैसी कोई चीज़ धड़कती महसूस होती है,यदि ये धड़कन ठीक नाभि के नीचे हो तो सही मानी जाती है। यदि इधर उधर हो तो कब्ज़ ,दस्त की शिकायत होती है।नाभि हमारे शारीर की 7200 नाड़ियों का संगम है,इसी कारण सारा शरीर प्रभावित होता है, धरण ठीक करने के सैकड़ों तरीके सदियों से प्रभावी रूप में प्रचलित हैं। जिनमें से सबसे आसन तरीका बता रहा हूँ जो तुरंत परिणाम देता है। (1). धरण जांचने का तरीका ये है की अपने दोनों हाथों की रेखाए मिला कर छोटी उंगली की लम्बाई चैक करे, अंतर दिखने पर धरण की पुष्टि होती है,तब पीठ के बल लेट जाएँ,दोनों पैरों को 90° डिग्री एंगल पर जोड़ें,आप देखेंगे की एक पैर छोटा है, एक बड़ा है। ये टली नाभि जांचने के तरीकें हैं। पुष्टि होने पर इसे ठीक करने के लिए, छोटे पैर की टांग को धीरे-2 ऊपर उठायें 6,7,8,9, इंच तक उठायें,फिर धीरे-2 ही नीचे रखकर लम्बा सांस लें,यही क्रिया दो बार और करें,ये क्रिया सुबह शाम ख़ाली पेट करनी चाहिए। पैरों को फिर मिलाकर देखें दोनों अंगूठे बराबर दिखेंगे। यानी आपकी नाभि सही जगह पर बैठ गयी है। फिर उठकर 20 ग्राम गुड, 20 ग्राम सौफ का बनाया चूरन फांक लें पानी से इससे पुराणी से पुराणी धरण आप खुद महिना दो महीने में ठीक कर सकतें है पेट को कभी भी मसल वाना नहीं चाहिए। सबसे पहले आप दोनों हथेलियों को आपस में मिलाएं और हथेली के बीच की रेखा मिलने के बाद जो उंगली छोटी हो यानी कि बाएं हाथ की उंगली छोटी है तो बायीं हाथ को कोहनी से ऊपर दाएं हाथ से पकड़ लें-इसके बाद बाएं हाथ की मुट्ठि को कसकर बंद कर हाथ को झटके से कंधे की ओर लाएं आप ऐसा आठ-दस बार करें इससे नाभि सेट हो जाएगी। इसके अलावा उत्तानपादासन, मत्स्यासन, धनुरासन व चक्रासन भी नाभि सेट करने में कारगर होते हैं। कमर के बल लेटकर पेट की मालिश भी की जा सकती है इसके लिए सरसों का तेल लेकर पेट पर लगाएं और नाभि स्पंदन जो ऊपर या साइड में सरक गया है उस पर अंगूठे से दबाव डालते हुए नाभि केंद में लाने का प्रयास करे। दो चम्मच पिसी सौंफ, गुड में मिलाकर एक सप्ताह तक रोज खाने से नाभि का अपनी जगह से खिसकना रुक जाता है। मरीज को सीधा (चित्त) सुलाकर उसकी नाभि के चारों ओर सूखे आँवले का आटा बनाकर उसमें अदरक का रस मिलाकर बाँध दें एवं उसे दो घण्टे चित्त ही सुलाकर रखें आपके दिन में दो बार यह प्रयोग करने से नाभि अपने स्थान पर आ जाती है तथा दस्त आदि उपद्रव शांत हो जाते हैं। नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को मूँगदाल की खिचड़ी के सिवाय कुछ न दें तथा दिन में एक-दो बार अदरक का 2 से 5 मिलिलीटर रस पिलाने से लाभ होता है।


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Saturday, 27 January 2024

संवत्सर


 इंग्रजी कॅलेंडरच्या आधारे आपण सर्वजण आपले जन्मवर्ष लक्षात ठेवतो आणि लगेच सांगतो. पण आपण भारतीय हिंदू पंचांगावर आधारित संवत्सर लक्षात ठेवण्यासाठी धडपडतो. तुमचा जन्म कोणत्या संवत्सरात झाला ते खाली दिले आहे. आमचा जन्म कोणत्या भारतीय वर्षी झाला हे जाणून घेण्यासाठी आणि लक्षात ठेवण्यासाठी काही सुज्ञ व्यक्तीने हे तयार केले आहे. कृपया हे जतन करा आणि नियमित वापरा.


(1867, 1927,1987,): प्रभा
(१८६८,१९२८,१९८८): विभाव
(१८६९,१९२९,१९८९): शुक्ला
(1870,1930,1990): प्रमोदूता
(१८७१,१९३१, १९९१): प्रजोतपट्टी
(1872,1932,1992): अंगीरसा
(१८७३,१९३३,१९९३): श्रीमुख
(1874,1934,1994): भव
(1875,1935,1995)::युवा
(१८७६,१९३६,१९९६): धाता
(1877,1937,1997): ईश्वरा
(१८७८,१९३८,१९९८): बहुधन्य
(1879,1939,1999): प्रमादी
(1880,1940,2000): विक्रम
(1881,1941,2001): वृषा
(1882,1942,2002): चित्रभानू
(१८८३,१९४३,२००३): स्वभानु
(1884,1944,2004): तारा
(1885,1945,2005): पार्थिव
(1886,1946,2006): व्याया
(1887,1947,2007): सर्वजित
(1888,1948,2008): सर्वधारी
(1889,1949,2009): विरोधी
(1890,1950,2010): विकृती
(1891,1951,2011): खारा
(१८९२,१९५२,२०१२): नंदना
(1893,1953,2013): विजया
(1894,1954,2014): जया
(1895,1955,2015): मनमथा
(1896,1956,2016): दुर्मुखी
(1897,1957,2017): हेवीलंबी
(1898,1958,2018): विलंबी
(1899,1959,2019): विकारी
(1900,1960,2020): शर्वरी
(1901,1961,2021): प्लावा
(1902,1962,2022): शुभकृत
(1903,1963,2023): शोभाकृत
(1904,1964,2024): क्रोधी
(1905,1965,2025): विश्ववसु
(1906,1966,2026): परभाव
(1907,1967,2027): प्लावंगा
(1908,1968,2028): किलाका
(1909,1969,2029): सौम्या
(1910,1970,2030): साधराना
(1911,1971,2031): विरोधिकृत
(१९१२,१९७२,२०३२): परिधावी
(1913,1973,2033): प्रमादा
(1914,1974,2034): आनंदा
(1915,1975,2035): राक्षस
(1916,1976,2036): नल/अनल
(1917,1977,2037): पिंगळा
(1918,1978,2038): कालयुक्ती
(1919,1979,2039): सिद्धार्थी
(1920,1980,2040): रौद्री
(1921,1981,2041): दुरमती
(1922,1982,2042): दुंदुभी
(1923,1983,2043): रुधिरोद्गारी
(1924,1984,2044): रक्ताक्षी
(1925,1985,2045): क्रोधना
(1926,1986,2046): अक्षया

तुम्हाला माहिती आहे का, भारतीय *पंचांग* प्रणालीनुसार प्रत्येक वर्षाला विशिष्ट नाव असते? आणि प्रत्येक नावाला एक अर्थ आहे? वर्षांची *६०* नावे *(संवत्सर)* आहेत. प्रत्येक नाव 60 वर्षांनंतर पुन्हा चालते. वर्ष सामान्यतः *एप्रिलच्या मध्यात* सुरू होते.*

2019-20 या वर्षाला *'विकारी'* असे नाव देण्यात आले, जे *'आजार' वर्ष म्हणून नावाप्रमाणे जगले!*

2020-21 या वर्षाला *‘शर्वरी’* म्हणजे *अंधार* असे नाव देण्यात आले आणि त्याने जगाला एका अंधाऱ्या टप्प्यात ढकलले!

आता *‘प्लावा’* वर्ष (२०२१-२२) संपत आहे. ‘प्लव’ म्हणजे, *"जे - जे आपल्याला पलीकडे घेऊन जाते.* *वराह संहिता* म्हणते: हे जगाला असह्य अडचणींमधून पार करेल आणि आपल्याला वैभवाच्या स्थितीत पोहोचवेल. आणि आम्हाला *अंधारातून प्रकाशाकडे* घेऊन जा!
हिंदू असल्याचा अभिमान आहे

2022-23 या वर्षाचे नाव *'शुभकृत'* आहे, ज्याचा अर्थ *शुभ निर्माण करतो*.

आम्ही आता आतुरतेने वाट पाहू शकतो आणि उद्याचा दिवस चांगला जाण्याची अपेक्षा करू शकतो

Wednesday, 24 January 2024

जुनी मापने मोजण्याची पद्धत

१) पायली म्हणजे चार शेर  म्हणजे सात किलो
२) अर्धा पायली ( आडसरी ) म्हणजे दोन शेर म्हणजे साडे तीन किलो
३) एक शेर म्हणजे अंदाजे दोन किलो
४) मापट म्हणजे अर्धा शेर म्हणजे साधारण एक किलो
५) चिपट म्हणजे पाव शेर म्हणजे साधारण अर्धा किलो (५०० ग्राम)
६) कोळव म्हणजे पाव किलो (२५० ग्राम )
७) निळव म्हणजे आतपाव ( १२५ ग्राम )
८) चिळव म्हणजे छटाक  (५० ग्राम )

ही जुनी मापने मोजण्याची पद्धत.

साभार - मराठी विश्वकोश

Thursday, 18 January 2024

कपूर के पौधे के चमत्कार...



हम सभी अपने घर की पूजा में कपूर जलाते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि कपूर कहां से आता है? कैसा होता है इसका पौधा? क्या इस पौधे को घर में लगा सकते हैं, लगा लिया तो क्या फायदे होंगे? आजकल जो प्रचलित कपूर हम लाते हैं वह केमिकल्स के बने होते हैं। कपूर एक विशालकाय पेड़ से प्राप्त होते हैं जिनका चिकित्सकीय लाभ कमाल का होता है। केमिकल्स वाले कपूर में मेडिसिनल वैल्यू बहुत कम होती है।


कपूर का पेड़ लंबे समय तक चलने वाला सदाबहार वृक्ष है।इसका वृक्ष भारत, श्रीलंका, चीन, जापान, मलेशिया, कोरिया, ताइवान, इन्डोनेशिया आदि देशों में पाया जाता है। कपूर के पेड़ की लम्बाई 50 से 100 फीट तक होती है। इसके फूल, फल तथा पत्तियां सभी आकर्षक होते हैं। इसे सजावटी पेड़ के रुप में भी लोग अपनाते हैं। इसकी पत्तियां बड़ी, सुन्दर और लालिमा व हरापन लिए होती हैं। वसन्त ऋतु में इसमें छोटे-छोटे खुशबूदार फूल लगते हैं। इसके फल भी बड़े मोहक होते हैं। कपूर के पेड़ की लकड़ियां फर्नीचर के काम में भी लाई जाती हैं।

यह काफी मजबूत और टिकाऊ होती है। इसके पेड़ से प्राप्त लकड़ियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर, तेज आंच पर उबाला जाता है फिर भाप और शीतलीकरण विधि से कपूर का निर्माण होता है। इससे अर्क और तेल भी बनाया जाता है, जिसका प्रयोग प्रसाधन एवं औषधि कार्यों में होता है। आयुर्वेद, एलोपैथी और होमियोपैथी दवाइयों में भी कपूर का प्रयोग होता है। इसकी तासीर ठंडी है। कपूर और गाय के घी से काजल भी बनाया जाता है। यह आंखों के लिए बड़ा गुणकारी होता है।

कपूर के पौधे को हम अपने घर, बाहर, बगिया, गमले आदि कहीं भी किसी भी जगह पर लगा सकते हैं। कपूर का पौधा अच्छी सेहत का भंडार और वरदान है।

कपूर के पौधे के संपर्क में जो रहता है तो वह हमेशा स्वस्थ रहता है। कपूर का पौधा पर्यावरण को शुद्ध करने में बहुत बड़ी मदद करता है। कपूर का पौधा हमें प्राण वायु प्रदान करता है।

◾वास्तु और ज्योतिषीय फायदे-

कपूर का पौधा लगाने से घर से बीमारियां दूर हो जाती हैं। कपूर का पौधा घर में लगाने से आसपास की सभी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती हैं। कपूर का पौधा अपनी सुगंध से चारों ओर के वातावरण को खुशबूदार बना देता है। कपूर का पौधा धन की आवक को आकर्षित करता है। कपूर का पौधा रिश्तों में मिठास लाता है।

कपूर का पौधा घर में रखने से खुशियों का आगमन होता है। कपूर का पौधा घर और घर के सदस्यों को नजर से बचाता है। कपूर का पौधा घर में रखने से बुरी आत्माएं घर से दूर रहती हैं। कपूर का पौधा घर के किसी भी कोने में रख सकते हैं यह पूरे घर के वास्तु दोष को हर लेता है। घर के बाहर रख रहे हैं तो इसे प्रवेश की तरफ से द्वार के दाएं तरफ रखें।

कपूर का पौधा घर के मंदिर के आसपास भी रख सकते हैं। इससे पूजा का फल दो गुना हो जाता है।

कपूर का पौधा तरक्की लाता है सदस्यों के बीच की तकरार को खत्म करता है। कपूर का पौधा सेहत के लिए तो अत्यंत फायदेमंद है ही मन और आध्यात्मिक शांति के लिए भी आश्चर्यजनक रूप से लाभकारी है।

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Monday, 15 January 2024

रामायण में वर्णित श्रीराम जी का वनवास मार्ग....


श्रीराम को 14 वर्ष का वनवान हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया। रामायण में उल्लेखित और अनेक अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार जब भगवान राम को वनवास हुआ तब उन्होंने अपनी यात्रा अयोध्या से प्रारंभ करते हुए रामेश्वरम और उसके बाद श्रीलंका में समाप्त की। इस दौरान उनके साथ जहां भी जो घटा उनमें से 200 से अधिक घटना स्थलों की पहचान की गई है।

जाने-माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतार ने श्रीराम और सीता के जीवन की घटनाओं से जुड़े ऐसे 200 से भी अधिक स्थानों का पता लगाया है, जहां आज भी तत्संबंधी स्मारक स्थल विद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिक तरीकों से की। आओ जानते हैं कुछ प्रमुख स्थानों के बारे में...

1. तमसा नदी - अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की।

2. श्रृंगवेरपुर तीर्थ - प्रयागराज से 20-22 KM दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है।

3. कुरई गांव - सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे।

4. प्रयाग - कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। कुछ महीने पहले तक प्रयाग को इलाहाबाद कहा जाता था ।

5. चित्रकूणट - प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।

6. सतना - चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था।

7. दंडकारण्य - चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए। असल में यहीं था उनका वनवास। इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।

8. पंचवटी नासिक - दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षे‍त्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है। यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।

9. सर्वतीर्थ - नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।

10. पर्णशाला - पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।

11. तुंगभद्रा - सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।

12. शबरी का आश्रम - तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।

13. ऋष्यमूक पर्वत - मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे।

14. कोडीकरई - हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।

15. रामेश्‍वरम - रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।

16. धनुषकोडी - वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्‍य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्‍नार से करीब 18 मील पश्‍चिम में है।

इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्‍थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।

17. नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला - वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।

श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए है।

जय श्रीराम, जय सनातन धर्म ✨🕉️🔱💖😌🙏

Saturday, 13 January 2024

शरीर की सभी नसों को खोलने का आयुर्वेदिक समाधान....



कपूर और नींबु कितने उपयोगी है...

दिन में सिर्फ़ एक बार यह साधारण सा उपाय करके देखिए, सिर के बाल से पैर की उंगली तक सारी नसें मुक्त होने का आपको स्पष्ट अनुभव होगा कि सिर से पैर तक एक तरह से करंट का अनुभव होगा, आपके शरीर की नसें मुक्त होने का स्पष्ट अनुभव होगा। हाथ–पैर में होने वाली झंझनाहट (खाली चढ़ना) तुरंत बंद हो जाती हैं,

◾पुराना घुटनों का दर्द और कमर, गर्दन या रीड की हड्डी (मणके) में कोई नस दबी या अकड़ गई है तो वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगी, पुराना एड़ी का दर्द भी ठीक हो जाएगा।

◾इस उपाये से बहुत से लोगों के लाखों रुपए बच सकते हैं। पैर में फटी एड़ियां और डैड स्किन रिमूव हो जाती है और पैर कोमल हो जाते हैं और इसके पीछे जो विज्ञान और आयुर्वेद है.

◾यह उपाय करने के लिए हमें घर में ही उपलब्ध कपूर और नींबू, ये दो चीजें चाहियें। इस उपाय को करने के लिए डेढ़ से दो लीटर गुनगुना पानी लें, जिसका तापमान पैर को सहन होने जितना गरम हो, उसमे आधे नींबू का रस निचोड़े और फिर नींबू को भी उस पानी में डाल दें

◾फिर दूसरी चीज कपूर है–कोई भी कपूर हो। कपूर की तीन गोलिय् बारीक पीस कर उसका पाउडर बना लें, यह भी उस पानी में मिला लें, फिर पांच से दस मिनट तक पैरों को इस पानी में डाल कर रखें।

◾जैसे ही आप पैरों को पानी में डालेंगे, तो आपको इससे सिर से पैर तक एक तरह से करंट का अनुभव होगा। आपके सिर के बालों से पैर तक की सारी नसें मुक्त होने का स्पष्ट रूप से अनुभव होगा। इसका कारण यह है कि हमारे पैरों में 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट होते हैं, जो हमारे शरीर की सभी नसों के साथ जुडे होते हैं।

◾यह नींबू और कपूर वाला गुनगुना पानी इन 172 प्रकार के प्रेशर पॉइंट्स को मुक्त कर देता है और इससे शरीर की सारी नसें एकदम से रीएक्टिवेट हो जाती हैं और पूरी तरह से मुक्त हो जाती हैं, ऐसा अनुभव होता है।

◾इस उपाय में सिर्फ पांच से दस मिनट तक इस पानी में पैर डाल कर रखने है और यह दिन में कभी भी सुबह या शाम को कर सकते हैं।

◾इससे हाथ, पैर में होने वाली झनझनाहट (खाली चढ़ना) बंद हो जाती हैं और कोई नस दबी या अकड़ गई हो, तो वह खुल जाएगी और सिरदर्द भी इस उपाय से बंद हो जाता है।

◾जिन लोगों को माइग्रेन की तकलीफ हो वह भी, पानी में पैर रखने के साथ ही बन्द हो जायेगी। अगर स्नायु अकड़ गये हों या शरीर दर्द कर रहा हो तो यह उपाय करके देखिए।

◾इसका कोई साइड इफैक्ट नहीं है और यह उपाय सरल रूप से किया जा सकता है।

◾यह उपाय पांच दिन करना है। यह उपाय दिखने में तो सरल लगता है मगर इस का रिज़ल्ट बहुत ही अच्छा और असरदार होता है....आपको इससे नुकसान कुछ नहीं होगा फायदा ही होगा....🙏